रविवार, 31 दिसंबर 2017

मारवाड़ - मावली मीटर गेज रेल यात्रा



राजस्थान में आज के समय (2017) में एक ही रूट पर मीटर गेज चलती है- मारवाड़ - मावली के बीच ।
पिछले साल शेखावाटी की भी आखरी बची चूरू-सीकर-जयपुर मीटर गेज ट्रेन अचानक बन्द हो गई । इस पर मैंने यात्रा कर रखी थी । इसके बन्द होते ही मुझे डर लगने लगा कि कहीं राजस्थान की एक मात्र बची मारवाड़ - मावली भी बन्द ना हो जाये । यह लाइन बन्द होने से पहले ही इस पर यात्रा कर लेनी चाहिये । इसी सिलसिले में 14 जून, 2017 को मैं और मेरा दोस्त अमित जाॅगिड़, जोधपुर के रास्ते से मारवाड़ जंक्शन पर पहुंच गये ।

 मारवाड़ जंक्शन 

 इंजन

 और ये खड़ी पैसेंजर ट्रेन 

यात्रा शुरू होती है मारवाड़ स्टेशन से । मालवी जाने वाली ट्रेन, एकांत में स्थानांतरित मीटर गेज प्लेटफार्म पर शायद रात भर से खड़ी थी, उसमें मैं और मेरा दोस्त अमित जाॅगिड़ बैठ गए । मारवाड़ - मावली ट्रेन सुबह के ठीक 5 बजकर 20 मिनट पर चल दी, भीड़ बिल्कुल नहीं थी । गाड़ी में बिना गद्दी वाले लकड़ी की सीटें किसी धरोहर से कम नहीं थी ।

मैं और मेरा दोस्त अमित जाॅगिड़ 

या यू कहिये मारवाड़ से मावली 

मारवाड़ जंक्शन के बाद पहला स्टेशन मारवाड़ राणावास आया, यहां गाड़ी धुल उड़ाती गई । पता नहीं यहां गाड़ी क्यों नहीं रूकी, या तो सवारीयां नहीं थी या सुबह वाली ट्रेन नही रूकती होगी । डब्बे में बेठे एक मारवाड़ी ताऊ से मेरा परिचय हो गया ।

एक मारवाड़ी तो दुसरा बागड़ी 

मारवाड़ राणावास 

ट्रेन मैदानी भाग को खत्म करते हुए एक बोर्ड लगा हुआ था जिस पर लिखा था मैदानी भाग खत्म होता है, और थोड़ी देर में अगला स्टेशन फुलाद आया । यहां ट्रेन काफी देर के लिए रूकी । ड्राइवर और उसका सहायक ट्रेन का प्रेशर ठीक करने में बीजी थे । यहां पर हमने चाय पी और फोटोग्राफी की ।

  ट्रेन ने घुमना शुरू कर दिया है 

सुर्योदय 

क्या शानदार घुमाव है 

 इस रेल लाइन पर जितने भी क्रोसिंग पड़ते है, सभी पर एक अनोखी घटना घटती है । ट्रेन क्रोसिंग से पहले रूकती है, ट्रेन ड्राइवर सड़क के दोनों तरफ देखता है कि कोई वाहन तो नहीं आ रहा, सन्तुष्ट होने पर सीटी बजाकर गाड़ी को आगे बढ़ा देता है ।

 दूर से दिखाई देते अरावली के पहाड़ 

सिग्नल 

 राजस्थान में एक मात्र इतना मीटर गेज लाइन का जाल बचा है ।

फुलाद रेलवे स्टेशन 

फुलाद से आगे कोई रेल लाइन नही थी अब ट्रेन का इंजन आगे से कटकर पिछे की और लगा । और कुछ देर बाद ट्रेन रवाना हो चली ।

  ये रेल के तीन डिब्बे हरियाली अमावस्या के दिनों में जोड़ दिया जाता है क्योंकि जब भीड़ ज्यादा होती है 

 फुलाद स्टेशन पर गाड़ी काफी देर तक खड़ी रही

  फुलाद रेलवे स्टेशन पर यादगार फोटो 

 फुलाद में पाॅइंटमैंन इंजन की शटिंग करता हुआ ।




 मीटर गेज का इंजन । इस पर वाई डी एम 4 (YDM4) लिखा है ना । Y का मतलब है मीटर गेज, D का मतलब डीजल इंजन और M का मतलब सवारी गाड़ी व मालगाड़ी दोनों को खींचने के लिये ।

  फुलाद स्टेशन ! यहां से गाड़ी रिवर्स में चलती है । यानी इंजन दूसरी तरफ लगाया जाता है ।

फुलाद स्टेशन पर 

ट्रेन के दरवाजे में खड़े होकर फोटो खिंचवाना अपने आप में एक अनोखा और यादगार फोटो होता है ।

मीटर गेज की लाइनें 

फुलाद से निकलते ही ट्रेन के नजदीक लगे हुए बोर्ड ने यह घोषणा कर दी की घाट सेक्शन शुरू होने वाले है । थोड़ी देर बाद आगे एक बोर्ड आया जिस पर लिखा था की घाट यहां से शुरू होता है । फोटोग्राफी करना सख्तमना है । इस बात पर मेरा ध्यान नही, जब सीन ऐसे हो जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता तो मैं फोटो खीचें बिना कैसे रूक सकता था ।

 फुलाद से मावली जाने वाली लाइन पर पता नहीं फोटोग्राफी पर प्रतिबंध क्यों लगा देते है ! 

मैं अपने बारे में एक बात बता दू की मुझे किसी भी लाइन पर पैसेंजर गाड़ी में बैठकर हर स्टेशन पर रूकना और चलती हुई ट्रेन की फोटो खिंचना अच्छा लगता है ।
फुलाद से मालवी जाने वाली लाइन पर पता नहीं फोटोग्राफी पर प्रतिबंध क्यों लगा देते है । मैं सोच रहा था कि कोई नदी होगी जिसके घाट के किनारे यह ट्रेन जायेगी पर मेरा अंदाजा बिल्कुल गलत था । यह घाट नदी के नही बल्कि पहाड़ों के थे । ट्रेन गोल - गोल घुमती हुई ऊँचे ऊँचे पहाड़ों के बीच से गुजरना इस यात्रा को बड़ा मनोरंजन बना देता है ।

 ट्रेन पहाड़ी भाग में प्रवेश करती हुई ! 

 अब शुरू होता है घाट यानी पहाड़ियों का सेक्शन 

 अब घाट शुरू हो चुका है 

 घाट को पार करती मारवाड़ पैसेंजर 

  पहाड़ों से गुजरती मारवाड़ पैसेंजर 

सेक्शन 


घाट पर पैसेंजर 

घुमावदार 


कई घाट पार करने के बाद मात्र नाम प्लेट और झाड़ियों से ढ़का पहाड़ों के बीच एक छोटा सुनसान गौरम घाट स्टेशन आया । स्टेशन पर न कोई रेलवे का कर्मचारी और न ही स्टेशन मास्टर फिर भी यहां 2-3 मिनट गाड़ी रूकी ।

 गोरम घाट रेलवे स्टेशन, स्टेशन पर ताला लगा हुआ है ! 


  मारवाड़ रेल के दरवाजे में खड़े अमित जाॅगिड़

ताऊ ने बताया यहां बीच जंगल में ट्रेन ड्राइवर नीचे उतरकर एक स्थान पर पुजा करते है । फिर ट्रेन को आगे बढाते है । आते - जाते दोनों टाइम हरेक ट्रेन के ड्राइवर ऐसा ही करते है ।
पास में बैठे एक सहयात्री ने बताया गौरम घाट पर्यटक स्थल है । यहां प्रसिद्ध गोरख नाथ जी महादेव का मंदिर है । और यहां बारिश के मौसम में पर्यटक घुमने आते हैं पानी के झरने भी बहते है, हरियाली अमावस्या के दिनों में ट्रेन ऊपर नीचे से खचा-खच भरी आती है ।
पास में बैठे ग्रामीण गौरम घाट के पास बने एक मन्दिर के बाबा की बात कर रहे थे की कैसे वो इस जंगल में भी 200 गाय की सेवा कर रहे है ।
ट्रेन काफी समय के बाद बहुत धीमी हो जाती है पहाड़ी इलाका शुरू होते ही हमे दूर - दूर के नजारे दिखाई देने लगते है । बंदर, लंगूर, स्पून बिल चिड़ियाएं, खुद पर मोहित होते मौर और तेजी से भागती नील गाय मुझे यह अहसास कराते ट्रेन से दिखी की यह एरिया कितनी जैव विविधता से भरा है ।

  उँचे उँचे पुल और सभी के सभी घुमावदार

मनमोहक दृश्य 

 गाड़ी के अन्दर बुजुर्ग भी बच्चे के साथ घाट के मजे ले रहे हैं । अन्दाजा लगा लो कि ट्रेन में कितनी भीड़ रही होगी 

 बड़ा रोमांचक अनुभव होता है ऐसे पुलो पर गुजरते समय 

मोर 

अरावली की श्रृंखला 

ट्रेन पहाड़ियों के रास्ते से जाती हुई ट्रेन दो बड़ी सुरंगों से गुजरी बड़ा ही अलग सा ही एक अनुभव होता है और ट्रेन की मधुर सीटी बड़ा ही अनुभव हो रहा था ।
सुरंग पार करते ही देखा की बंदर - लंगूर हमारी ट्रेन का ही इंतजार कर रहे हैं, ड्राइवर ने बंदरों को कुछ खाना दे दिया शायद ये उनका रोज का रूटिन था ।

 ट्रेन सुरंग में प्रवेश करेगी

 लंगूर हमारी ट्रेन के इंतजार में था 

यह रास्ता इतना दुर्गम है कि अब भी यहां बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं है रेलवे वाले भी सौलर लाईट आदि का उपयोग करते है ।
जिन उँचे पहाड़ी रास्ते से ट्रेन गुजर रही थी वहां से पाली शहर भी दिखाई दिया ।

यह रेलवे लाइन अपने घाट सेक्शन के घुमावदार ट्रैक की वजह से अपने मुसाफिरों को किसी हिमालय रेल की याद दिला जाती है । 

देश की एक मात्र मीटर गेज लाइन, जहां सभी 35 पुल घुमावदार (कवर्ड) है ।

ये दुसरी सुरंग 

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सफर के दौरान मारवाड़ी ताऊ ने बताया की गुजरात में कपड़ों की मीलो में काम करता था तब गर्मी के दिनों में इस लाइन पर कोयले वाला इंजन (स्टीम इंजन) गुजरता था, तो ड्राइवर भाप का प्रेशर बढ़ा कर धुंये के साथ कोयला भी उड़ाता था । इन जलते हुए कोयले से सुखी घास से आग लग जाती थी । घास में आग लगते ही बुझाया करते थे । ताऊ ने बताया की यही वो जगह है जिसके चलते हर राजस्थानी को मारवाड़ी पुकारा जाता है ।
यात्रा के दौरान ताऊ ने अपने बचपन की नैरोगेज व मीटर गेज के सफर की यादें बताई ।
ताऊ ने लिखित में अपना परिचय देकर मुझे मारवाड़ के पास अपने गांव आने का निमन्त्रण दिया ।
ताऊ ने बताया अब भेड़ - बकरियों का रेवड़ रखता हूं, अब गांव से आया हूं रेवड़ इधर उधर मिलेगा । ताऊ ट्रेन धीरे होते ही उतर गया । 

वो ही मारवाड़ी ताऊ 

वैसे छोटी लाइन की ट्रेने आकर्षित बहुत करती है !

इस लाइन का सबसे बड़ा आकर्षक यही सेक्शन है 

ट्रेन अब खामली घाट स्टेशन पर पहुंच गई । यहां मैने पानी पिया । इस स्टेशन पर 5-6 गिनी चुनी सवारीयां ही थी । ट्रेन के सबसे पीछे वाले डब्बे में बैठे गार्ड से सवारीयों ने गत्ते वाले टिकट लिया । 

खामली घाट में प्रवेश 

खामली घाट रेलवे स्टेशन 

गेटमैंन ट्रेन में ही यात्रा करता है । ट्रेन फाटक से पहले रूकती है, गेटमैंन उतरकर फाटक बन्द करता है, फिर ट्रेन पार करती है । आखिर में गेटमैंन फाटक खोलकर ट्रेन में चढ़ जाता है । फिर आगे बढ़ती है ट्रेन ।


और अगला स्टेशन देवगढ़ मदारिया आया यहां भी गिनी चुनी सवारीयां थी ।
यहां का स्टेशन बहुत अच्छा लगा यह सुनसान एकांत स्टेशन पर 7-8 मिनट तक ट्रेन यहाँ काफी देर तक खड़ी रही और मुझे मौका मिल गया फोटोग्राफी करने का ।

देवगढ़ मदारिया स्टेशन 

मीटर गेज ट्रेन भारत में जल्द ही इतिहास बनने वाली है

छूक - छूक रेलगाडी 

मेरा भी एक फोटो खिंचना 

इस तरह के दृश्यो को कैद करना मुझे अच्छा लगता है ।

 भारत में कहीं भी चले जाओ, कहीं भी घूम आओ पर देवगढ़ मदारिया स्टेशन पर उतर कर जो सुकून मिलता है उसकी कोई होड़ नही ।

ट्रेन चलने के थोड़ी देर बाद एक मारवाड़ी ताऊ ने ट्रेन के आगे हाथ कर गाड़ी रूकवा कर ताई को गाड़ी में बिठा दिया । है ना मजेदार यात्रा । यह वही ट्रेन है जिसके आगे कोई जानवर आता दिख जाये इसे तुरंत रोक दिया जाता है ।

रूक गई ट्रेन 

देवगढ़ मदारिया स्टेशन पार करते ही छोटा नोटिस बोर्ड पर लिखा था कि ट्रेन वेस्टर्न रेलवे के सबसे ऊँचे पाॅइंट यानी की समुन्दर तल से 669 मीटर की ऊँचाई से गुजर रही है । आगे दौलाजी का खेड़ा नामक स्टेशन आया । इस स्टेशन पर दो ही सवारीयां ट्रेन में चढ़ी, दोनों ने गार्ड से ही टिकट लिया ।

 दौलाजी का खेड़ा स्टेशन

यात्री गार्ड से टिकट लेते हुए 

फिर आगे कुँवाथल स्टेशन पर ट्रेन रूकी यहां 7-8 सवारीयां गार्ड से टिकट लेकर ट्रेन में चढ़ गई और ट्रेन चल पड़ी, कुँवाथल स्टेशन के थोड़ी देर बाद ट्रेन कोठारी नदी को पार कर दी । नदी एकदम सुखी थी ।

कुँवाथल रेलवे स्टेशन 
कुँवाथल की सवारीयां 

कोठारी नंदी 

चलती ट्रेन का एक दृश्य 

रेलवे के कर्मचारी 

मैं और मेरा दोस्त अमित जिस डब्बे में बैठे, वह बिलकुल खाली पड़ा था ।
अब ट्रेन खारा कमेरी नामक स्टेशन पर रूकी यहां पर कोई सवारीयां नहीं थी, सिर्फ नाम मात्र का स्टेशन ।

खारा कमेरी स्टेशन 

मानव रहित - ठहरिये और सावधानी से चलिये । यह चेतावनी ट्रेन के ड्राइवरो के लिये है । ऐसा मनैं और कहीं नही देखा  !

यहां पर तो घर से भी हाथ हिला दे तो भी ट्रेन को रोकना पड़ता है ।

फिर आगे चारभुजा रोड़ बड़े स्टेशन पर रूकी, यहां पर चारभुजा रोड़ पर सामने से आती रेल को क्रोसिंग के लिए ट्रेन को कुछ देर लिए रोका । चारभुजा रोड़ स्टेशन नाम को यहां के स्थानीय लोग आमेट स्टेशन भी कहते हैं ।

चार भुजा रोड़ स्टेशन का नाम आमेट भी है 

भारत के किसी भी कोने में रेल यात्रा कर लो, ट्रेन में शेखावाटी का लड़का मिल ही जायेगा 

फिर ट्रेन चल पड़ी थोड़ी देर बाद ट्रेन आगे बढ़ी तो ट्रेन ने ब्रेक लगा दिए, पता चला आगे मानव रहित फाटक से एक ट्रेक्टर क्रोस हो रहा था ।
फिर लावा सरदारगढ़ स्टेशन आया, स्टेशन पर कोई स्टाफ नही था और गार्ड ही टिकट बेच रहा था । रास्ते में खेतों में काम करती महिलायें दिखी, पानी भरते ग्रामीण, खेत के बाड़ो के नजदीक से गुजरती ट्रेन से एक बार तो ऐसा लगा कि यह रेलवे ट्रेक नही होकर कोई गांव का कच्चा रास्ता हो ।

लावा सरदारगढ़ रेलवे स्टेशन की इमारत 

पुराने नीम के पेड़ 
फाटक बन्द 

पुराने स्लीपर के अवशेष 

आगे ट्रेन कुंआरिया स्टेशन पर रुकी, यहां पर भी कोई स्टेशन मास्टर नही था, यहां भी ट्रेन का गार्ड ही टिकट देने का काम करता है ।
आगे सोनियाणा मेवाड़ नामक स्टेशन पर ट्रेन नही रूकी, पता नहीं क्यों नहीं रूकी और मैं भी इस स्टेशन की फोटो लेना भुल गया था ।

कुंआरिया 

पुराने जमाने वाली परम्परा 

और ये वो छोटा वाला पंखा 

फिर ट्रेन कांकरोली स्टेशन पर रूकी । ( मैं और मेरे दोस्त अमित ने मारवाड़ से कांकरोली तक 25-25 रूपये का टिकट लिया था, यहां हमने आगे मावली का 10-10 का गार्ड से गत्ते वाला टिकट लिया )

कांकरोली रेलवे स्टेशन 

मेरे फेसबुक मित्र देवेन्द्र कुमावत राजसमंद के साथ मुलाकात 

गत्ते वाली टिकट 

थोड़ी देर बाद ट्रेन चल पड़ी, आगे बेजनाल नामक छोटा स्टेशन आया यहां आदम के जमाने का लोहे की चद्दरो का स्टेशन बंद पड़ा था । यहां 15-16 सवारीयां ट्रेन में चढ़ी ।
मेरे सामने वाली सीट पर मारवाड़ी ताई आपस में मारवाड़ी भाषा में बातें कर रही थी, मैं सिर्फ उनके मुख की तरफ ही देख रहा था पर मेरी समझ से बाहर था कि वो क्या बातें कर रही थी ? मैंने उनका फोटो खिंचा वो खुश हुई और उन्होंने मुझसे पूछा कि आपकी तरफ ऐसा पहनाव नही है । मैंने उत्तर दिया - जी नहीं ।

इनके चेहरे पर मुस्कराह बनी रहे, इसलिए यहां मीटर गेज ट्रेन चलती है 

बेजनाल स्टेशन 

बेजनाल की सवारीयां 

मैं जब भी कहीं जाता हूँ तो वहाँ के रंग में मिल जाता हूँ, हर जगह की अपनी एक खासियत होती है । और गर हम उस खासियत को पहचाना ले तो हमारे लिए वो जगह हमेशा के लिए यादगार बन जाती है ।


फिर ट्रेन नाथद्वारा स्टेशन होते हुए थामला मोगाना स्टेशनों पर एक-एक मिनट रूकी । थामला मोगाना के आगे थोड़ी देर बाद मीटर गेज ट्रैक के समान्तर बड़ी लाइन थी, अब बड़ी लाइन संचालित में नहीं है । शायद ही मीटर गेज ट्रेन बन्द करने से पहले ही ट्रेन की पटरिया डाली गई हो ।

ये नाथद्वारा है 

नाथद्वारा का स्टेशन 

थामला मोगाना स्टेशन 

थामला मोगाना की इमारत 


मीटर गेज लाइन के समान्तर बड़ी लाइन 

ट्रेन जिस गांव से गुजर रही थी उन्हें दूर से देख कर मुझे लगा कि इन गांव में जिंदगी शहर के कोलाहत से दूर शायद थोड़ी ज्यादा सुकून भरी होगी ।
मारवाड़ से आते वक्त ये ट्रेन लगभग खाली होती जा रही थी । थामला मोगाना के नाम के आखरी स्टेशन को पार करते हम इस 152 किलोमीटर के प्राकृतिक नजारो के इस खुबसुरत सफर का आंनद उठाते दिन के 11 बजकर 45 मिनट पर मावली स्टेशन पर पहुंच कर मालवी स्टेशन पर उतर कर मेरी एक बेहद सुन्दर मीटर ट्रेन की यात्रा का अंत हुआ ।

मावली जंक्शन में प्रवेश 

और आखिर में मावली जंक्शन । यात्रा खत्म

 मीटर गेज लाइन में लकड़ी के स्लीपर 

यात्रा के दौरान आने वाले बीच के स्टेशन पूरी तरह सुनसान थे । सभी स्टेशनों पर गार्ड ही टिकट देता है । और रास्ते में 30-35 से ज्यादा मानव रहित, व सड़क क्रोस फाटक पर ज्यादा तर ट्रेन फाटक से पहले रूकती और ट्रेन में ड्राइवर का एक सहायक दोनों तरफ ही देखकर ही ट्रेन को आगे बढ़ाते है । ऐसा मनै भारत में मीटर गेज ट्रेक पर कहीं नही देखा ।
इस यादगार क्षण को आने वाली पीढ़ी को बताऐंगें की उस जमाने में छोटी गाड़ियों में सफर किया था । मैं और मेरे दोस्त अमित खाना खाकर वापस स्टेशन पर आ पहुंचे यहां स्टेशन पर हम नीम की छाव में गहरी नींद में थे तो तब हमारे कानों में आवाज पड़ी की 'यात्रीगण कृपया ध्यान दे की मालवी से मारवाड़ छोटी ट्रेन जाने वाली प्लेट फोरम चार पर खड़ी हो गई है.... । हम दोनों उठकर, खाने के लिए नाश्ता लेकर मारवाड़ वाली ट्रेन बेठ गये । मावली से ट्रेन ठीक सांय के 6 बजकर 50 मिनट पर चल पड़ी । यह ट्रेन नाथद्वारा स्टेशन पर करीब 7:20 पहुंच गई, यहां पर ट्रेन 15-20 मिनट रूकी रही, सामने वाली ट्रेन को क्रोस कराया गया ।

ट्रेन वापस चलने को 

ये बाबा ट्रेनों का भयंकर शौकीन है । और बताया अब अलवर जिले में किसी प्रसिद्ध मंदिर में रहता हूं ।

चलो चले हम मितवा......

बोगी के अन्दर 

रात्रि को 

क्रोस कराने के बाद ट्रेन चल पड़ी तो कुछ देर बाद दिन ढ़ल गया और अंधेरा होने लगा । रात के सफर में जंगलो में से पक्षियों की चहचहाहट बहुत अच्छी लग रही थी । हम रात के 1बजे मारवाड़ स्टेशन पर पहुंच गये ।
मावली से नाथद्वारा तक 30 किलोमीटर मीटर गेज के समान्तर बड़ी लाइन डाली हुई थी ।
मुझे कई मित्र इस यात्रा के दौरान मिले पर उनका जिक्र फिर कभी -

वैसे इस ट्रेन से मेरे कई संस्मरण जुड़े पर लिख नही पाया, फिर कभी दुबारा इस लाइन पर सफ़र करूंगा दोनों को जोड़ कर लिखुंगा ।
1936 से चल रही ये ट्रेन दुनिया के चुनिंदा मीटर गेज ट्रेन में से एक है । ये मारवाड़ से मावली 152 किलोमीटर का सफर कश्मीर की वादियों सा अहसास करवाता है । 80% रास्ता पहाड़ों के बीच से होकर गुजरता है । इस यात्रा में सब चीजें छोटी थी, ट्रेन, स्टेशन, गांव उनमें एक सूक्ष्मता और कोमलता थी आंनद था चारों तरफ से राजस्थानी संस्कृति ही थी ।
मारवाड़ से मावली की यह यात्रा मेरे लिए बहुत सुख और यादगार रही । वहां की प्राकृतिक सुंदरता ने मन मोह लिया और वहां के दृश्यों को मनै मोबाइल कैमरे में कैद किया । अवसर मिलने पर मैं एक बार फिर ऐसी सुखद यात्रा में वहां दुबारा अवश्य जाना चाहूंगा ।


मावली से मारवाड़ मीटर गेज लाइन को ब्राॅडगेज लाईन (बड़ी लाइन) की स्वीकृति मिली हुई है । मीटर गेज कुछ ही महिनों में बन्द होने वाली है ।
भले ही राजस्थान की एक बची हुई मीटर गेज ट्रेन बन्द हो रही हो लेकिन उनकी यादें हमेशा हमारे जेहन में रहेंगी । - लोकेश जालवाल, चूरू


उम्मीद है आपको मेरे इस रेल यात्रा वृतांत ने बोर नही किया होगा, आपके कमेंट्स मुझे और प्रोत्साहित करेंगे ।


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